Essay on the man who has no inner life is a slave to his surroundings.
Vah vyakti jiska antrik jeevan nahi ho pristhiti ka gulam hota hai
जिस मनुष्य का आंतरिक जीवन न हो , वह उसकी परिस्थिति (परिवेश) का गुलाम होता है। हेनरी फ्रेडरिक के इस कथन का अभिप्राय यह कि अगर व्यक्ति का कोई आंतरिक जीवन न हो तो ऐसी स्थिति में वह अपने परिवेश का नौकर के समान होता है। अगर मनुष्य सांसारिक जीवन में अत्यंत व्यस्त हो जाता है और स्वयं के अन्तः मन की आवाज को भी नहीं सुन पाता तो वह एक सांसारिक दुनिया के गुलाम की भांति हो जाता है । मनुष्य को अपने मन की आवाज को भी सुनना चाहिए और अपनी अंदरुनी अभिलाषाओं को समझना चाहिए ,अन्यथा उसका जीवन एक निर्जीव की तरह साधारण कार्यकलाप में व्यर्थ चला जाएगा।
अन्तः जीवन मतलब अपनी अंतरात्मा को पहचानना और उसके साथ संपर्क स्थापित करना। सही तरीके से जीवन का आनंद लेना यही है क़ि हम अपनी अंतरात्मा की आवश्यकताओं को भी समझें , नहीं तो यह जीवन रोजमर्रा के कार्यो में ही गुजर जाएगा।
अगर मनुष्य का अपने मन से जुड़ाव नहीं है तो वह एक गुलाम की तरह अपने आसपास के अनावश्यक कार्यो में अपना अनमोल जीवन व्यर्थ गवां देगा। प्रकृति के इस अनमोल जीवन में हमें अपने आंतरिक जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए। इतिहास पर दृष्टि डालें तो गौतम बुद्ध ,महावीर स्वामी, रामकृष्ण परमहंस आदि अनेक महापुरूषों ने अपने आंतरिक जीवन के महत्त्व को समझ कर ही परम ज्ञान की प्राप्ति की।
परंतु आज के आधुनिक युग में मनुष्य एक मशीन जैसा प्रतीत होता है। जो पेट भरने के लिए रोटी का तो इंतजाम करता है लेकिन अंतः जीवन की अनेक आवश्यकताओं को किनारे कर देता है। मोबाइल फ़ोन से हम दूर विदेश में बैठे मित्र से तो बात कर लेते हैं लेकिन अपने अन्तः मन से कभी वार्तालाप नहीं करते। टेलीविजन पर फिल्मों को तो बड़े चाव से देखते हैं लेकिन आंतरिक जीवन की क्या दशा है वह नहीं देखते। यह और कुछ नहीं बल्कि एक प्रकार से परिवेश या परिस्थिति का गुलाम बनना ही है।
अन्तः जीवन मतलब अपनी अंतरात्मा को पहचानना और उसके साथ संपर्क स्थापित करना। सही तरीके से जीवन का आनंद लेना यही है क़ि हम अपनी अंतरात्मा की आवश्यकताओं को भी समझें , नहीं तो यह जीवन रोजमर्रा के कार्यो में ही गुजर जाएगा।
अगर मनुष्य का अपने मन से जुड़ाव नहीं है तो वह एक गुलाम की तरह अपने आसपास के अनावश्यक कार्यो में अपना अनमोल जीवन व्यर्थ गवां देगा। प्रकृति के इस अनमोल जीवन में हमें अपने आंतरिक जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए। इतिहास पर दृष्टि डालें तो गौतम बुद्ध ,महावीर स्वामी, रामकृष्ण परमहंस आदि अनेक महापुरूषों ने अपने आंतरिक जीवन के महत्त्व को समझ कर ही परम ज्ञान की प्राप्ति की।
परंतु आज के आधुनिक युग में मनुष्य एक मशीन जैसा प्रतीत होता है। जो पेट भरने के लिए रोटी का तो इंतजाम करता है लेकिन अंतः जीवन की अनेक आवश्यकताओं को किनारे कर देता है। मोबाइल फ़ोन से हम दूर विदेश में बैठे मित्र से तो बात कर लेते हैं लेकिन अपने अन्तः मन से कभी वार्तालाप नहीं करते। टेलीविजन पर फिल्मों को तो बड़े चाव से देखते हैं लेकिन आंतरिक जीवन की क्या दशा है वह नहीं देखते। यह और कुछ नहीं बल्कि एक प्रकार से परिवेश या परिस्थिति का गुलाम बनना ही है।
कुछ लोग अपने कार्य में तो निपुण होते है लेकिन उनके जीवन में नीरसता भरी होती है। इस नीरसता का कारण है उनका अन्तः जीवन का न होना।अर्थात आंतरिक मनोस्थिति को संतुष्ट न करना।
धन कमाने की लालसा का कोई अंत नहीं है। कितनी भी भौतिक सुख सुविधाएँ जुटा लें लेकिन असली प्रसन्नता तब तक प्राप्त नहीं कि जा सकती जब तक कि आंतरिक मनोभाव प्रसन्न न हो। अगर अन्तः मन से संपर्क न हो तो हम आसपास के मायाजाल के गुलाम बने रहेंगे।
अगर अपने जीवन को सार्थक तरीके से व्यतीत करना है तो आंतरिक और बाहरी जीवन में सामंजस्य बैठाना होगा।
अगर अपने जीवन को सार्थक तरीके से व्यतीत करना है तो आंतरिक और बाहरी जीवन में सामंजस्य बैठाना होगा।
विकास की इस अंधाधुंध दौड़ में मनुष्य का आंतरिक जीवन के प्रति प्रेम कम होता जा रहा है।
इस प्रकार जिस मनुष्य का आंतरिक जीवन न हो , वह अपने आसपास की भौतिक दुनिया का गुलाम होता है।
अपने मन अपनी अंतरात्मा से प्रेम करना भी आवश्यक है ताकि जीवन को नीरसता से दूर रखा जा सके। नैतिकता ,सदगुण ,भाईचारे की भावना ,अहिंसा आदि गुण व्यक्ति के उत्तम आंतरिक जीवन का ही प्रणाम होते है।
आंतरिक जीवन को सुधार कर ही हम अपने बाहरी दुनिया का आनंद ले सकते हैं। अगर मन प्रसन्न न हो तो सब कुछ होते हुए भी , व्यक्ति का जीवन गुलाम की तरह नीरस हो जाता है। इसलिए अपने अंदर अपने मन को प्रसन्न रखना चाहिए ,भले ही कितनी भी सांसारिक समस्याएं क्यों न हो। अन्तः मनोस्थिति को कभी भी निराशा ,कटुता ,हिंसा आदि बुरे विचारों से नहीं भरना चाहिए।
आज अधिकतर लोग धन रूपी मोहमाया के पीछे भागकर ,अपने आंतरिक जीवन को नजरअंदाज कर रहे है। इसकारण वे परिवेश के गुलाम की तरह भौतिक वस्तुएं प्राप्त करने में जुटे रहते हैं। बाहरी वेशभूषा पर हजारों रूपये खर्च कर देते हैं लेकिन अपने आंतरिक जीवन के लिए कुछ नहीं करते।
अपने मन अपनी अंतरात्मा से प्रेम करना भी आवश्यक है ताकि जीवन को नीरसता से दूर रखा जा सके। नैतिकता ,सदगुण ,भाईचारे की भावना ,अहिंसा आदि गुण व्यक्ति के उत्तम आंतरिक जीवन का ही प्रणाम होते है।
आंतरिक जीवन को सुधार कर ही हम अपने बाहरी दुनिया का आनंद ले सकते हैं। अगर मन प्रसन्न न हो तो सब कुछ होते हुए भी , व्यक्ति का जीवन गुलाम की तरह नीरस हो जाता है। इसलिए अपने अंदर अपने मन को प्रसन्न रखना चाहिए ,भले ही कितनी भी सांसारिक समस्याएं क्यों न हो। अन्तः मनोस्थिति को कभी भी निराशा ,कटुता ,हिंसा आदि बुरे विचारों से नहीं भरना चाहिए।
आज अधिकतर लोग धन रूपी मोहमाया के पीछे भागकर ,अपने आंतरिक जीवन को नजरअंदाज कर रहे है। इसकारण वे परिवेश के गुलाम की तरह भौतिक वस्तुएं प्राप्त करने में जुटे रहते हैं। बाहरी वेशभूषा पर हजारों रूपये खर्च कर देते हैं लेकिन अपने आंतरिक जीवन के लिए कुछ नहीं करते।
Fore more words on this essay please refre
part-2-of-man-who-has-no-inner-life-
भृष्टाचार , हिंसा ,अपराध आदि सभी दुर्गुण ,उस व्यक्ति के शून्य आंतरिक जीवन को दर्शाता है । आंतरिक जीवन न होने के कारण वह व्यक्ति गुलाम की तरह दुर्गुणों को अपनाता चला जाता है ,उसका स्वयं पर नियंत्रण ही नहीं होता।
भृष्टाचार , हिंसा ,अपराध आदि सभी दुर्गुण ,उस व्यक्ति के शून्य आंतरिक जीवन को दर्शाता है । आंतरिक जीवन न होने के कारण वह व्यक्ति गुलाम की तरह दुर्गुणों को अपनाता चला जाता है ,उसका स्वयं पर नियंत्रण ही नहीं होता।
इन सभी बातों पर विचार करें तो हम पाएंगे लोकप्रिय दार्शनिक हेनरी फ्रेडरिक ने सही कहा है कि, जिस मनुष्य का आंतरिक जीवन न हो , वह उसकी परिस्थिति (परिवेश) का गुलाम होता है।
That's why Swiss philosopher & poet Henri Frederic said that the man who has no inner life is a slave to his surroundings.
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Please read above essay on the man who has no inner life..
ReplyDeletewoh vyakti jiska antrik jeevan nahi hai wo paristhityo ka gulam bana hua hai
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