Essay on Independence can be meaningful only if it becomes instrument for expression of our culture in hindi.
स्वतंत्रता तभी सार्थक हो सकती है जब वह हमारी संस्कृति का साधन बन जाए। पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने अपने इस कथन से स्वाधीनता के वास्तविक अर्थ को व्यक्त किया है। वास्तव में जब तक देश अपनी संस्कृति को प्रदर्शित नहीं कर सकता , तब तक उसकी स्वतन्त्रता की पूर्ण उपयोगिता प्रकट नहीं हो सकता। हमारा देश कई शताब्दियों तक लगातार पराधीन रहा है। पराधीनता के कारण हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते हुए अपने आदर्शों को खोते रहे हैं। देश के पराधीन होने का ही ये परिणाम है कि आज हम विदेशी सभ्यता और संस्कृति से इतनी बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं कि आज हम स्वाधीन होकर भी मूल भारतीय सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे है। आज हम पश्चिमी और आधुनिक संस्कृति के गुलाम होकर मौलिक भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।
स्वतंत्रता तभी सार्थक हो सकती है जब वह हमारी संस्कृति का साधन बन जाए। पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने अपने इस कथन से स्वाधीनता के वास्तविक अर्थ को व्यक्त किया है। वास्तव में जब तक देश अपनी संस्कृति को प्रदर्शित नहीं कर सकता , तब तक उसकी स्वतन्त्रता की पूर्ण उपयोगिता प्रकट नहीं हो सकता। हमारा देश कई शताब्दियों तक लगातार पराधीन रहा है। पराधीनता के कारण हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते हुए अपने आदर्शों को खोते रहे हैं। देश के पराधीन होने का ही ये परिणाम है कि आज हम विदेशी सभ्यता और संस्कृति से इतनी बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं कि आज हम स्वाधीन होकर भी मूल भारतीय सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे है। आज हम पश्चिमी और आधुनिक संस्कृति के गुलाम होकर मौलिक भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।
पंडित दीन दयाल जी का यह उपरोक्त कथन (Independence can be meaningful only if it becomes instrument for expression of our culture) हमारा इस ओर ध्यान केंद्रित कराता है कि हमें अपनी मूल संस्कृति से प्रेम करते हुए उसे पूर्ण रूप से अपनाना चाहिए । स्वतन्त्रता के साथ साथ हमें अपनी संस्कृति की भी एक स्वतन्त्र पहचान का निर्माण करना चाहिए। स्वतन्त्रता का सही महत्त्व तभी है जब हम अपनी संस्कृति को भी प्रदर्शित करें।